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Saturday, September 10, 2011

बाँसुरी बजाया न करो

मोहन हमारे मधुवन में तुम आया न करो,
जादू भरी  बाँसुरीया बजाया न करो ॥

सूरत तुम्हारी देख के सलोनी साँवरी,
सुन बाँसुरी की राग को हम हो गयी बावरी,
माखन को चुराने वाले दिल चुराया न करो ॥१॥
मोहन हमारे मधुवन में तुम आया न करो,
जादू भरी  बाँसुरीया बजाया न करो ॥

माथे मुकुट, गलमाल, कटि में काछनी सोहे,
कानों में कुण्डल झूमके मन मेरे को मोहे,
इस चन्द्रमा के रुप को लुभाया न करो ॥२॥
मोहन हमारे मधुवन में तुम आया न करो,
जादू भरी  बाँसुरीया बजाया न करो ॥

अपनी यशोदा मात की सौगन्ध है तुमको,
यमुना नदी के तीर पै तुम ना मिलो हमको,
इस बाँसुरी की तान पै बिलमाया ने करो ॥३॥
मोहन हमारे मधुवन में तुम आया न करो,
जादू भरी  बाँसुरीया बजाया न करो ॥

इसी तुम्हारी बाँसुरी  ने मोहिनी डारी,
चन्द्र सखी की बीनती तुम सुनियौ बनवारी,
दरस दिखा दे साँवरा अब देर नाकरो ॥४॥
मोहन हमारे मधुवन में तुम आया न करो,
जादू भरी  बाँसुरीया बजाया न करो ॥
 

एक शिव एक नारायण


एक शिव एक नारायण, दोनो है समरुप
कही पर छाया बन जाते है कही बनते धूप
एक शिव एक नारायण, दोनो है समरुप
एक के संग लक्ष्मी, एक के संग शक्ति रुप
सीता जी सम सहनशील, लव कुश बालक रुप ||

Tuesday, July 26, 2011

देवाधिदेव हे महादेव .........


देवाधिदेव हे महादेव ....
देवाधिदेव हे महादेव ....
हमने मन मन्दिर सजाया ....,
आकर तो देख - आकर तो देख
देवाधिदेव हे महादेव .........


तीनों लोक रहते तेरे चरणों में देवा ,
 हमको भी दे दो नाथ चरणों की सेवा
हम भी तर जायें बालक तेरे .....
 भव सिंधु से - भव सिंधु से
देवाधिदेव हे महादेव .........

शिव भजन


१.
बोलो बोलो सब मिल बोलो ओम नमह शिवाय
ओम नमह शिवाय ओम नमह शिवाय

जटा जटा मे गन्गा धारी
त्रिशुल धारि डमरू बजावे 

डम डम डम डम डमरू बजावे
गून्ज उठावेऎ नमह शिवाय 

बोलो बोलो सब मिल बोलो ओम नमह शिवाय
ओम नमह शिवाय ओम नमह शिवाय 

२.
शन्भो महादेवा सदा शिवा
अम्बुज नयना नारायणा           
हर ओम हर ओम सदा शिवा
हरि ओम हरि ओम नारायणा

पन्नग भुषण सदा शिवा
पन्नग शयना नारायणा 

कैलाश वासा सदा शिवा
वैकुन्ठ वासा नारायणा 

गौरी समेता सदा शिवा
लक्ष्मी समेता नारायणा

पार्वती रमणा सदा शिवा
पाप विमोचन नारायणा 

३.
शिव शम्भो हर हर शम्भो
पार्वतीपते शिवा पशुपते
गन्गाधर हर गौरीपते 

पन्कजलोचन पापविलोचन
परमदयाळो पाही शिव
दीनदयाळो देही शिव 
 ॥ शिव शम्भो ॥

Saturday, July 16, 2011

चलें बाबा के द्वार....... चलें देवघर नगरिया.......... बोल - बम !


जय शिव शंकर!
दोस्तो,
यदि आपने मेरी कल की पोस्ट पढ़ी होगी, तो आप ने देखा होगा कि मैने एक बात शुरुआत में ही लिखी थी.. "......... पता नहीं कितने रूपों में सावन हमारे आस पास बिखरा पड़ रहा है. हर कोई अपने अपने तरीके से इसे समेटने में लगा है. ........आशा है हमेशा की तरह एक बार फ़िर आप मेरे साथ यादों के सफ़र के हमराह होंगे."
मैं झारखंड राज्य स्थित देवघर में अवस्थित बाबा भोलेनाथ के ज्योतिर्लिंग स्वरूप बाबा बैद्यनाथ, बाबा रावणेश्वर के बारे में चर्चा कर रहा था. आपने देखा कि किस तरह बाबा के इस स्वरूप की स्थापना हुई. आज तीसरी श्रावणी सोमवारी के पावन अवसर पर मैं आपको ले चल रहा हूँ इसी काँवरिया मार्ग  पर जिसपर चलकर भक्तगण 105 km का दुरूह सफ़र पैदल तय करते हैं. और इसी से जुड़ी मेरी वो बचपन की यादें, जिनका हमराह मैं आपको बनाना चाह रहा हूँ. आशा है मेरे वे बिछड़े साथी जो दो महीने पहले मेरी blog यात्रा के रुकने पर मुझसे दूर हो गये थे फ़िर आ मिलेंगे.
बहरहाल मैं बात कर रहा था काँवरिया भक्तों की. भक्तगण दूर दूर के प्रदेशों से विभिन्न साधनों के द्वारा पहले सुलतानगंज पहुँचते हैं. सुल्तानगंज, बिहार राज्य के भागलपुर जिले में स्थित एक छोटा सा शहर है. जो देश से सड़क और रेल मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है. यहीं बहती है उत्तरवाहिनी गंगा. यहाँ इस पतित पावनी उत्तरवाहिनी गंगा का अपना एक विशेष महत्व है. कहते हैं, भगवान राम ने यहीं काँवरिया वेश में गंगाजल भरकर पैदल राह तय कर बाबा बैद्यनाथ को जल अर्पण किया था. काँवर उठा कर ले जाने की प्रथा तभी से शुरू मानी जाती है.
                                                   India Kanwarias Walk
उत्तरवाहिनी गंगा के तट पर पंडे श्रद्धालु भक्तों को संकल्प कराते हैं, श्रद्धालु पात्रों में जल भरते हैं और कंधे पर काँवर रख कर आकाश गुँजित उदघोष करते हैं - "बोल बम" और रवाना हो जाते हैं एक भक्तिमय लंबे पथ पर जिसपर लगभग तीन दिनों के सफ़र बाद वो मंजिल आनी है जब बाबा के दर्शन होंगे, एक संकल्प पूरा होगा. पूरे सावन महीने तक रोज लाखों की तादाद में काँवरियों का जत्था यहाँ से बाबा नगरी के लिये प्रस्थान करता है. एक दूसरे का उत्साह बढ़ाते काँवरिया चलते जाते हैं, बढ़ते जाते हैं. अगर मैं कहूँ कि काँवरिया नहीं चलते वरन काँवरियों का एक रेला सा चलता है तो ज्यादा सटीक होगा. दूर तक जहाँ तक भी नज़र जायेगी सिर्फ़ गेरुआ रंग की एक कतार सी ही दिखेगी पूरे काँवरिया पथ में.
बोल बम.. बोल बम. बोल बम.. बोल बम.
बाबा नगरिया दूर है, जाना जरूर है.. भैया बम, बोलो बम, माता बम बोलो बम, चाची बम , बोलो बम.
सारे काँवरिया एक दूसरे को बम कह कर संबोधित करते है.नाचते गाते काँवरिया आगे की ओर बढ़ते जाते हैं.

इस 105 किमी के सफ़र में कई पड़ाव आते हैं जब काँवरिया रुकते हैं, सुस्ताते हैं, अपनी थकान मिटाते हैं.सुल्तानगंज से लेकर बाबाधाम तक काँवरिया पथ के दोनों ओर खाने पीने की स्थाई और अनगिनत अस्थाई दुकाने हर कदम पर आपको मिलेंगी. अब इन दुकानों में खाने की क्वालिटी पर बहस हो तो वो एक अलग मुद्दा हो जायेगा. जगह जगह medical camp भी लगे होते हैं. थॊड़ी देर इनकी सेवायें लेने के बाद निकल पड़ते हैं आगे के सफ़र पर बोल बम की गुंजायमान उदघोष के साथ.  इन्हीं कई पड़ावों में एक पड़ाव है " तारापुर" जहाँ का आपका यह दोस्त रहने वाला है. सुलतानगंज के बाद मुख्य पडावों मे हैं- मासूमगंज, असरगंज, रणग्राम और तब तारापुर. लगभग 20 किमी के बाद यह पड़ाव आता है तो अधिकतर काँवरिया यहीं रुकना पसंद करते हैं. तारापुर की आँखों देखी विवरणी मैं अपने अगले पोस्ट में दूंगा जब आप मेरे साथ पूरे तारापुर के काँवरिया पथ का सजीव वर्णन आपके सामने रखूंगा. फ़िलहाल आगे चलें...
तारापुर के बाद 7 किमी पर आता है रामपुर, एक दूसरा अति महत्वपूर्ण पड़ाव. यहा लगभग सभी काँवरिया रुकते हैं क्यूँकि अधिकतर काँवरियों के लिये यहाँ लगभग रात हो जाती है और आगे का सफ़र थोड़ा मुश्किल भरा हो जाता है.
दूसरे दिन सवेरे उठकर नित्य क्रिया से निवृत हो अपने काँवर पुन: कंधे पर टांग कर बम आगे की ओर निकल पड़ते हैं. यह भी नियम है कि काँवर को पूरे सफ़र के दौरान कभी भूमि स्पर्श नहीं होने देना है,सो काँवर को विश्र्ष प्रकार के बनाये गये stands पर ही रखा जाता है. इस दौरान कुत्ते अर्थात भैरो बम का स्पर्श भी वर्जित है सो सारे बम उससे बचते हुए चलते है. जब भी काँवर अपने स्थान से पुनः उठाया जाता है तो पहले पाँच बार कान पकड़ कर उठक बैठक लगाना भी अनिवार्य है. पूरे यात्रा के दौरान श्रृंगार प्रसाधनों का उपयोग भी वर्जित है.विशुद्ध शाकाहारी भोजन करते हुए और इन सारे कठिन नियमों का पालन करते हुए लोग बाबा के दरबार पहुँचते हैं.
रामपुर के बाद आता है कुमरसार फ़िर जिलेबिया मोड़. कुमरसार से आगे बढ़ते ही एक नदी पार करनी होती है, कभी कभी नदी का बहाव इतना तेज होता है कि सारे काँवरिया एक दूसरे को पकड़ कर चलने को बाध्य होते है. जिलेबिया मोड़, जैसा नाम से ही प्रतीत होता है, पहाड़ियों पर रास्ते हैं और ये मानो जलेबी के जैसे घुमावदार. आगे आता है सूईया पहाड़, यहाँ के पत्थर मानो सूई की तरह पाँवों में गड़ जाते हैं. पर बाबा के भक्तों को ऐसी कोई भी मुसीबत नहीं रोक नहीं सकती. पैरों में पड़े छाले, बहता खून भी मानॊं उनके उत्साह को डिगा नहीं पाता है. हरेक बाधा का और तेज हुँकार से काँवरिया जवाब देते हैं... बोल बम का नारा है.. बाबा एक सहारा है.
सूईया से कटोरिया, इनाराबरन, गोड़ियारी होते हुए काँवरिया बम आखिरकार पहुँच जाते हैं दर्शनियाँ. दर्शनियाँ आते ही बाबा के भक्तों की खुशी और उत्सह दूना हो जाता है क्योंकि यहाँ से ही बाबा के मंदिर की उपरी बाग नजर आने लग जाता है.  काँवरियों का रेला सा उमड़ रहा है. हर तर्फ़ गेरुआ वस्त्रों में लिपटे बम ही दिखाई दे रहे है. अब बस एक ही किलोमीटर तो रह गया है बाबा का नगर. लो बाबाधाम तो हम आ पहुँचे हैं. पहले शिवगंगा में स्नान कर लें फ़िर लाईन में लग कर बाबा बैद्यनाथ को जल अर्पण करना है.
                                         deoghar_temple2
अहा! कितना मनोरम दृश्य है. बोल..बम हर हर महादेव , ऊँ नमः शिवाय की ध्वनि से चहुँलोक गुँजायमान हो रहा है. लोग बब के मंदिर की प्रदक्षिणा कर मंदिर में बाबा पर जलाभिषेक कर रहे है.
बाबा बैद्यनाथ की जय... हर हर.. बम बम..


....... अभी बाबा का प्रसाद लेना तो बाकी ही है. चलें बाहर, देखें कितनी दुकाने सजी हुई हैं. यहाँ से उत्कृष्ट पेड़े, मकुनदाना और चूड़ा (चिवड़ा) प्रसाद के रूप में लें. गले में डालने के लिये मालायें( बद्धियाँ) लें, सुहागिनों के लिये सिंदूर भी ले लें.
अब जाकर हमारा संकल्प पूरा हुआ... अब सभी अपने अपने घरों की ओर प्रस्थान करें.
जय शिव शंभु!

सावन का पावन महीना और भगवान भोलेनाथ के द्वारे जाते काँवरिया.....


आजकल सावन का  महीना चल रहा है और बारिश की फ़ुहारें हम सभी को दिलो दिमाग तक भिगोये जा रही हैं. कहीं सावन के झूले पड़ रहे हैं तो कहीं सावन के बादलों को विकलता से पुकारा जा रहा है. कहीं सावन का गुणगाण किसी शेरो शायरी से किया जा रहा है तो कहीं सावन से किसी को कई गिले शिकवे हैं. कहीं गाड़ी में गुलाम अली साहब सावन की गज़ल गा रहे हैं तो कहीं ज़िला खाँ सावन को अपने सुरों में सजा रही हैं.
....... पता नहीं कितने रूपों में सावन हमारे आस पास बिखरा पड़ रहा है. हर कोई अपने अपने तरीके से इसे समेटने में लगा है. तो मैने सोचा कि मैं सावन के किस रूप को अपने दामन में भर लूँ. ज्यादा सोचने की जरूरत ही नहीं पड़ी क्यूंकि सावन से जुड़ी बहुत ही आस्थापूर्ण याद मेरे जेहन में बसी है और आज मैं उसी याद को आपसे बाँटना चाह रहा हूँ, आशा है हमेशा की तरह एक बार फ़िर आप मेरे साथ यादों के सफ़र के हमराह होंगे.
                                            
हमारे साथियों को पता ही होगा कि झारखंड राज्य स्थित देवघर में भगवान शिव का अति प्राचीन मंदिर है जहाँ देश (और यहाँ तक कि विदेशों से भी) के कोने कोने से लोग आकर शिवलिंग पर गंगा जलाभिषेक करते हैं. भगवान भोले शंकर यहाँ बाबा बैद्यनाथ के नाम से विराजते हैं. इसी कारण देवघर को बाबा बैद्यनाथ धाम या बाबाधाम के नाम से भी जाना जाता है. बाबा भोले नाथ यहाँ भगवान रावणेश्वर के नाम से भी ख्यातिनाम हैं. इन नामों के  पीछे भी कथाएँ प्रचलित हैं.
                                              temple1
प्राचीन कथा यह है कि जब लंकाधिपति रावण को यह लगा कि भगवान शिव के लँका में प्रतिस्थापित हो जाने से उसका राज्य बिल्कुल सुरक्षित हो जायेगा तो उसने कैलाश पर्वत पर तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न कर लिया और भोलेनाथ ने अपने शिवलिंग को उसे दे दिया पर साथ ये भी निर्देश दिया किया कि अगर लँका से पहले किसी भी जगह इस शिवलिंग को जमीन पर रखा तो वह वहीं स्थपित हो जायेगा और फ़िर उसे ले जाना संभव नहीं रहेगा.  देवताओं में चिंता बढ़ गयी. उन्होंने वरुण देव से आग्रह किया और रावण को तीव्र लघुशंका हुई. उसने शिवलिंग को जमीन पर रख दिया और लघुशंका करने लगा. इस तरह शिवलिंग देवघर में उसी स्थान पर प्रतिष्ठित हो गया. इस तरह रावणेश्वर नाम से भगवान जाने गये. कालांतर में बैद्यनाथ नाम के एक भील ने इसे पूजा जिससे यह बैद्यनाथ धाम के नाम से भी जाना गया, ऐसा माना जाता है.
बाबा बैद्यनाथ का यह शिवलिंग द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक ज्योतिर्लिंग है. शिव महापुराण में वर्णित द्वादश ज्योतिर्लिंग का विवरण इस प्रकार है..

सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम् । उज्जयिन्यां महाकालमोड्कारममलेश्वरम् ॥
परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशड्करम् । सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने ॥
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे । हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये ॥
एतानि ज्योतिर्लिड्गानि सायंप्रातः पठेन्नरः । सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति ॥ ऐसी मान्यता है कि अगर उत्तरवाहिनी गंगा से जल लाकर बाबा के ज्योतिर्लिंग का जलाभिषेक किया जाये तो बाबा विशेष प्रसन्न होते हैं और उनकी कृपा हमेशा भक्त पर बनी रहती है. सो प्रत्येक सावन के महीने में बाबा के भक्त देश और विदेशों के कोने कोने से आते हैं , सुल्तानगंज में उत्तरवाहिनी गंगा में पवित्र स्नान करते हैं, अपने पात्रों में जल लेते हैं और काँवर कांधे पर टांग कर रवाना हो जाते हैं बाबा भोले नाथ के द्वारे अपनी भक्ति निवेदित करने, अपने लाये जल को बाबा को समर्पित करने.
शिवभक्त काँवरिया उत्तरवाहिनी गंगा, सुलतानगंज से बाबाधाम,देवघर तक का 105 km का दुरूह सफ़र पैदल ही नंगे पाँव तय करते हैं. बोल बम- बोल बम, ऊँ नमः शिवाय का रट लगाते काँवरिया एक दूसरे को साहस दिलाते बढ़ते जाते हैं......




.............
भक्ति का ये सफ़र कल भी जारी रहेगा. चूँकि ये सफ़र बहुत लंबा है सो आप सब आशा है भगवान शिव की की आराधना में सावन के तीसरे सोमवार को भी साथ रहेंगे. श्रावणी सोमवारी बाबा को विशेष प्रिय है और हम अपनी आराधना पूरी करेंगे..... जय बाबा बैद्यनाथ.

श्रावण मास में शिव पूजा


श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन श्रवण नक्षत्र होने से मास का नाम श्रावण हुआ और वैसे तो प्रतिदिन ही भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए। लेकिन श्रावण मास में भगवान शिव के कैलाश में आगमन के कारण व श्रावण मास भगवान शिव को प्रिय होने से की गई समस्त आराधना शीघ्र फलदाई होती है। इस वर्ष श्रावण मास 16 जुलाई से आरंभ हो रहा है।

जो भक्त पूरे महीने उपवास नहीं कर सकते वे श्रावण मास के सोमवार का व्रत कर सकते हैं। सोमवार के समान ही प्रदोष का महत्व है। इसलिए श्रावण में सोमवार व प्रदोष में भगवान शिव की विशेष आराधना की जाती है। पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार श्रावण में ही समुद्र मंथन से निकला विष भगवान शंकर ने पीकर सृष्टि की रक्षा की थी। इसलिए इस माह में शिव आराधना करने से भोलेनाथ की कृपा प्राप्त होती है।

अमोघ फलदाई सोमवार व्रत
शास्त्रों और पुराणों में श्रावण सोमवार व्रत को अमोघ फलदाई कहा गया है। विवाहित महिलाओं को श्रावण सोमवार का व्रत करने से परिवार में खुशियां, समृद्घि और सम्मान प्राप्त होता है, जबकि पुरूषों को इस व्रत से कार्य-व्यवसाय में उन्नति, शैक्षणिक गतिविधियों में सफलता और आर्थिक रूप से मजबूती मिलती है। अविवाहित लड़कियां यदि श्रावण के प्रत्येक सोमवार को शिव परिवार का विधि-विधान से पूजन करती हैं तो उन्हें अच्छा घर और वर मिलता है।

शिव गायत्री मंत्र से होंगे दोष निवारण
जातक को यदि जन्म पत्रिका में कालसर्प, पितृदोष एवं राहु-केतु तथा शनि से पीड़ा है या ग्रहण योग है या फिर मानसिक रूप से विचलित रहते हैं, उन्हें भगवान शिव की गायत्री मंत्र से आराधना करना चाहिए। क्योंकि कालसर्प, पितृदोष के कारण राहु-केतु को पाप-पुण्य संचित करने और शनिदेव द्वारा दंड दिलाने की व्यवस्था भगवान शिव के आदेश पर ही होती है। इससे सीधा अर्थ निकलता है कि इन ग्रहों के कष्टों से पीडित व्यक्ति भगवान शिव की आराधना करे तो महादेवजी उस जातक की पीड़ा दूर कर सुख पहुंचाते हैं। भगवान शिव की शास्त्रों में कई प्रकार की आराधना वर्णित है लेकिन शिव गायत्री मंत्र का पाठ सरल एवं अत्यंत प्रभावशील है।

मंत्र निम्न है-
ॐ तत्पुरूषाय विदमहे,
महादेवाय धीमहि तन्नो रूद्र प्रचोदयात।

इस मंत्र को किसी भी सोमवार से प्रारंभ कर सकते हैं। इसी के साथ सोमवार का व्रत करें तो श्रेष्ठ परिणाम प्राप्त होंगे। शिवजी के सामने घी का दीपक लगाएं। जब भी यह मंत्र करें एकाग्रचित्त होकर करें, पितृदोष एवं कालसर्प दोष वाले व्यक्ति को यह मंत्र प्रतिदिन करना चाहिए। सामान्य व्यक्ति भी करे तो भविष्य में कष्ट नहीं आएगा। इस जाप से मानसिक शांति, यश, समृद्धि, कीर्ति प्राप्त होती है। शिव की कृपा का प्रसाद मिलता है।

भोलेनाथ को यूं रिझाएं
1 बिल्वपत्रं शिवार्पणम्
भगवान शिव को जो पत्र-पुष्प प्रिय हैं उनमें बिल्वपत्र प्रमुख है। श्रावण मास में बिल्वपत्र को शिव पर अर्पित करने से धन-संपदा, ऎश्वर्य प्राप्त होता है। लिंग पुराणानुसार "बिल्व पत्रे स्थिता लक्ष्मी देवी लक्षण संयुक्ता" अर्थात बिल्व पत्र में लक्ष्मी का वास माना जाता है। बिल्व वृक्ष को श्री वृक्ष भी माना जाता है। ऋग्वेदोक्त श्री सूक्त के अनुसार मां लक्ष्मी के तपोबल से बिल्वपत्र उत्पन्न हुआ, जो दरिद्रता को दूर करने वाला है। यह न केवल बाहरी बल्कि भीतरी दरिद्रता को भी दूर करने में समर्थ है। भगवान शिव की पूजा में पुष्पों का अभाव होने पर बिल्वपत्र चढ़ाने से भी शिवजी प्रसन्न हो जाते हैं। बिल्वपत्र को हमेशा शिवलिंग पर उल्टा चढ़ाना चाहिए। श्रावण मास में सहस्त्र बिल्वपत्र शिवलिंग पर चढ़ाने से शीघ्र ही समस्त मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।

2 रूद्राक्ष धारण करें
पौराणिक मान्यतानुसार भगवान शंकर के नेत्रों से आंसू की बूंदे टपकी, जो पृथ्वी पर गिरकर रूद्राक्ष के रूप में परिवर्तित हो गई। शंकर (रूद्र) की आंखों (अश्रु) से उत्पन्न होने के कारण ही इस वृक्ष के फल को रूद्राक्ष कहा गया। रूद्राक्ष भगवान शंकर को अत्यधिक प्रिय हैं। इसीलिए मान्यता है कि रूद्राक्ष में स्वयं भगवान शंकर का निवास है। रूद्राक्ष को धारण करने से मनुष्य के पाप नष्ट होते हैं और समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती है। आयुर्वेद के अनुसार रूद्राक्ष कफ निवारक व वायुविकार नाशक भी है। रूद्राक्ष का उपयोग ग्रहों के कुप्रभावों को दूर करने के लिए भी किया जाता है। जिस प्रकार रत्न व उपरत्न से ग्रहों के दोष दूर होते हैं उसी प्रकार रूद्राक्षों से भी ग्रहों के दोषों का निवारण संभव होता है।

3 पारद शिवलिंग की करें आराधना
पारे को विशेष प्रक्रियाओं द्वारा शोधित करके उसे ठोस बनाकर शिवलिंग बनाया जाता है। करोड़ों शिवलिंगों की पूजा से जो फल प्राप्त होता है उससे भी अधिक गुनाफल पारद शिवलिंग की पूजा करने से प्राप्त होता है। गरूड़ पुराण में पारद शिवलिंग को ऎश्वर्यदायक कहा है। इसकी पूजा करने से धन, असीम ज्ञान व ऎश्वर्य प्राप्त होता है। पौराणिक मान्यतानुसार रावण ने भी पारद शिवलिंग के निर्माण एवं उसकी पूजा उपासना कर भगवान शिव को प्रसन्न किया था। पारद शिवलिंग का निर्माण विशेष मुहूर्त में किया जाता है। श्रावण मास में पारद शिवलिंग की प्राण-प्रतिष्ठा करके घर पर नित्य पूजा करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

4 कावड़ यात्रा पर जाएं
श्रावण मास में भगवान शिव को रिझाने के लिए भक्त कावड़ यात्रा करते हैं। मान्यतानुसार पवित्र सरोवर या प्राचीन नदी के जल को लेकर पैदल चलकर शिव को रिझाने के लिए जल से अभिषेक एवं संपूर्ण श्रावण मास का व्रत करें। कावड़ लाकर भोले नाथ का जलाभिषेक करने की शुरूआत कब और कहां से हुई कुछ ठीक तरह से कहना मुश्किल है। पर यह जरूर है कि भगवान परशुराम पहले कावडिए थे, जिन्होंने गंगा जल से भगवान शिव का जलाभिषेक किया।

अरिष्ट नाश के लिए
जन्म कुंडली में अष्टम भाव आयु का है। इससे भी अष्टम भाव तृतीय भाव भी आयु का स्थान है। इनसे बारहवें भाव, द्वितीय एवं सप्तम भाव दोनों मारक भाव हैं। इस भाव में स्थित ग्रह एवं भाव के स्वामी मारकेश होते हैं। इन स्थानों में स्थित कू्रर ग्रह के कारण उत्पन्न होने वाले अरिष्ट आयु में कमी, रोग आदि प्रदान करते हैं। भगवान शिव स्वयं काल हैं, जिन्होंने काल पर विजय प्राप्त की है। मृत्यु को अपने अधीन किया। इसलिए उन्हे मृत्युंजय भी कहते हैं। जिन्हें अरिष्ट व मारकेश की दशा चल रहीं हो वे भगवान शिव की आराधना करें।

नव ग्रहों की शांति के लिए शिवाभिषेक
सूर्य- भगवान शिव पर जल से अभिषेक
चंद्र- कच्चे दूध में काले तिल डालकर अभिषेक
मंगल- गिलोए की बूटी के रस से अभिषेक
बुध- विधारा की बूटी के रस से अभिषेक
बृहस्पति- कच्चे दूध में हल्दी मिलाकर अभिषेक
शुक्र- पंचामृत से अभिषेक
शनि- गन्ने के रस से अभिषेक
राहु-केतु- भांग से अभिषेक करें।