सावन क्या होता है ? अगर यह पूछना है तो राजधानी दिल्ली के लोगों से पूछिये? जब गर्मी इतनी अधिक हो जाती है कि दोपहर को सन्नाटा छा जाता है । दफ्तर, शिक्षण संस्थाऐं बन्द हो जाती हैं । बिजली सप्लाई का कहर भी उन पर टूटता है, पीने का पानी का संकट।इन सब दिक्कतों के बाद जब एक तेज बौछार आती है तो दिल्ली का हर नागरिक घर की छतों पर, सड़कों पर एक ऐसा नृत्य करता है जो उनको सही सावन का अहसास दिलाता है । इस नृत्य को बच्चे, जवान यहाँ तक की नारियाँ और बर्जुग भी इसका आनन्द उठाने में पीछे नहीं रहते यह नृत्य किस शैली का होता है ? जो सभी को आन्नदित करता है ।
सावन में नृत्य का आनन्द लेते हुए कभी आप मोर को देखिए, वह किस प्रकार अपने पंख फैला कर वर्षा का आनन्द लेता है । अन्य पशु पक्षी भी मौसम की पहली वर्षा का आनन्द उठाते हैं । इन्हीं रुपों को प्रकृति से चुरा कर मानव ने इन्हें अपने नृत्य की माला का मोती बनाया । कत्थक नृत्य में तो मोर की अलग गत बनाई गई है । मोर की चाल का मतवालापन और उसके भाव हस्तक नृत्य के अंग बन गए हैं । कत्थक ही क्या सभी शास्त्रीय नृत्यों में मोर का नृत्य वर्षा और सावन का प्रतीक बन गया है । शास्त्रीय नृत्यों के अलावा लोक नृत्य में भी मोर के नृत्य का बोलवाला है । सावन का महीना सभी को तृप्त करके नृत्य में ‘जीवन्ता’ लाता है ।
सावन के नृत्यों में धार्मिकता का भी आभास होता है । नाट्य शास्त्र में नृत्य का सर्जन भगवान नटराज रुप शिव ने ही किया है और साावन का भगवान शिव को समर्पित है ।शिव नगरी काशी व उज्जैन रामेश्वर में नृत्य समारोह आयोजित किये जाते हैं । शिव भक्त कांवड़ में गंगा जल भर कर मीलों दूर की पैदल यात्रा करते हैं । वह भी अपने पाँवों में घुधरु बाँधते हैं । कहते हैं कि घुघरुओ से उनका तात्पर्य है कि घुघरुओं को नृत्य का प्रतीक माना गया है और वह चाहते हैं कि भगवान शिव की कृपा हो और उनका जीवन नाचते - गाते अर्थात खुशियों भरा हो । सावन से त्यौहार शुरु होते हैं । तीज पूरे उत्तर भारत में महिलाओं का त्यौहार माना जाता है । तीज पर झूले का महत्व भी वर्षा की फुहारों के साथ बागों में झूलों का पड़ना शुरु हो जाता है महिलाएँ, बालिकाएँ नृत्य करती हैं और झूला झूलते हुए प्यार के गीत गाती हैं । राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश में तो इस अवसर पर महिलाओं के सामूहिक नृत्यों का आयोजन भी किया जाता है । चैमासा पर्व पर घूमर नृत्य का एक अपना महत्त्व है । विरह का संदेश देते हुए नायिकाएँ अपना हाल सखियों को सुनाती हैं और नृत्य करती हैं क्योंकि सावन प्रेम का प्रतीक है । दूर रह रहे अपने प्रिय की याद में भी नृत्य का आयोजन प्रदर्शित होता है । सावन का झूला महोत्सव प्रथम नट श्री कृष्ण को समर्पित है । यह धारणा है कि श्री कृष्ण भगवान गोपियों संग रास सावन में ही रचाई थी । इसीलिए सावन में श्री कृष्ण की नगरी वृन्दावन, मथूरा आदि में नृत्य (रास) का आयोजन होता है । रास नृत्य के माध्यम से ही श्री कृष्ण भगवान ने सभी गोपियों को यह अहसास दिलाया था कि वह केवल राधा संग ही नही अपितु हर गोपी के संग प्रेम और सद्भावना रखते हैं । उनके कई रुप प्रकट होना सभी की मुग्ध करता है । भगवान का यह रास सावन मास में लगभग पूरे भारत में नृत्य रुप में प्रदर्शित होता है । यह तो एक धार्मिकता का नृत्य रुप है । परन्तु अगर आप अपने प्रिय को संग ले सावन में किसी पार्क, सड़क पर घूम रहे हो और वर्षा शुरु हो जाये तो क्या आप उसमें भीग कर आनन्द नहीं उठाएगें ? वर्षा, बादल, मोर और नृत्य ये सभी एक दूसरे से जुड़े इुए आनन्द और प्रेम का प्रतीक मनोरंजन सावन धर्म, नृत्य और आनन्द का प्रतीक है, परन्तु आज के व्यवसायिक युग में सावन की आड़ लेकर अश्लीलता परोसने को भी सावन का नाम दिया जाता है ।